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शायरे आजम, शायरे जादू बयाँ / जोश मलीहाबादी

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लोग कहते हैं कि मैं हूँ 'शायरे जादू बयाँ'<ref>जादुई वर्णन का कवि</ref>,
’सदर-ए- मआनी’<ref>अर्थ-नीति-शिरोमणि</ref>, 'दावर-ओ-अल्फाज़’<ref>शब्दों का न्यायाधीश</ref>’ , अमीरे-शायरां<ref>कवियों का सरदार</ref> ।
और ख़ुद मेरा भी कल तक , ख़ैर से था ये ख़्याल ।
शायरी के फ़न में हूँ ,मिनजुमला -ए-अहले -कमाल<ref>अत्यंत प्रतिभाशाली कवियों में से एक</ref> ।
लेकिन अब आई हैं जब इक गूना मुझमें पुख़्तगी<ref>थोड़ी-सी प्रौढ़ता</ref> ।
जेहन<ref>मष्तिष्क</ref> के आईने पे काँपा हैं अक्स-ए-आगही<ref>बुद्धि का प्रतिबिम्ब</ref> ।
आसमाँ जागा है सर में और सीने में जमीं ।
तब मुझे महसूस होता है कि मैं कुछ भी नहीं ।
जिहल की मंज़िल में था मुझको गुरूर-ए-आगही<ref>बुद्धिमता का घमंड</ref> ।
इतनी 'लामहदूद’<ref>असीम</ref> दुनिया और मेरी शायरी ।
'जुल्फे-हस्ती’<ref> सॄष्टि रूपी केश</ref> और इतने बेनिहायत पेचो-ख़म ।
उड़ गया 'रंगों तअल्ली’<ref> शेखी का रंग</ref> खुल गया अपना भरम ।
मेरे शेरों में फ़क़त एक तायराना<ref>छिछला</ref> रंग है ।
कुछ सियासी रंग है कुछ आशिकाना रंग है ।
कुछ 'मनाज़िर<ref>दृश्य, मंज़र का बहुवचन</ref>' कुछ 'मबाहिस’ <ref>तर्क</ref> कुछ 'मसाइल<ref>समस्याएँ</ref>' कुछ ख़याल ।
एक उचटता सा जमाल<ref>सौन्दर्य</ref> एक 'सर-ब-जानू<ref>तुच्छ चिंतन</ref>' सा ख़याल ।
मेरे 'कस्त्रे-शेर'<ref>शेरों के महल</ref> में 'गोगाए-फिक्रे-नातमाम'<ref>अपूर्ण चिंतन का कोलाहल</ref> ।
इक दर्द अंगेज दरमाँ<ref> ह्रदय विदारक इलाज़</ref> इक शिकस्त आमादा ज़ाम<ref>टूटने को तैयार प्याला</ref> ।
गाह सोजे चश्मे -अबरू<ref>कभी नयन और भौंह की चिंता</ref> ,गाह सोजे नाओ नोश<ref>खाने पीने की चिंता</ref> ।
गाह खलवत<ref> एकांत</ref> की ख़ामोशी ,गाह जलवत<ref>सभा</ref> का खरोश ।
चहचहे<ref>गान</ref> कुछ मौसमों के , जमजमे<ref>झरने</ref> कुछ ज़ाम के ।
देरे-दिल<ref> ह्रदय मंदिर में</ref> में चंद मुखड़े 'मरमरी असनाम'<ref>संगमरमर की मूर्तियाँ</ref> के ।
चंद जुल्फ़ों की सियाही ,चंद रुखसारों<ref>कपोल</ref> की आब ।
गाह 'हर्फ़े बेनवाई'<ref>ग़रीबी की चर्चा</ref> गाह शोरे इन्क़लाब ।
गाह मरने के अजायम<ref>संकल्प</ref> गाह जीने की उमंग ।
यही ओछी-सी बातें बस यही सतही से रंग ।
बेख़बर था मैं कि दुनिया राज़ अन्दर राज़ है ।
वो भी गहरी ख़ामोशी है जिसका नाम आवाज़ है ।
यह सुहाना बोसतां<ref>फुलवाड़ी</ref> सर्वो गुलो शमशाद<ref>सुन्दर वृक्ष और पुष्प</ref> का ।
इक पल भर का खिलंदरापन है आबो-बाद<ref>बादल और धुआँ</ref> का ।
'इब्तिदा' और 'इंतिहा'<ref>आदि और अंत</ref> का इल्म नज़रों से निहाँ ।
टिमटिमाता सा दिया दो जुल्मतों<ref>अंधकार</ref> के दर्मियाँ ।
'अंजुमन'<ref>सभा</ref> में 'तखलिए'<ref>एकांत</ref> हैं 'तखलियों' में 'अंजुमन' ।
हर 'शिकन'<ref>सलवट</ref> में इक 'खिंचावट'<ref> तनाव</ref> , हर 'खिंचावट ' में 'शिकन' ।
हर 'गुमाँ'<ref>भ्रम</ref> में इक 'यकीं'<ref>विश्वास</ref> सा हर 'यकीं ' में सौ 'गुमाँ ' ।
नाखुने-तदबीर<ref>उपाय </ref> में भी इक गुत्थी बे-अमां<ref>अनंत पेच</ref> ।
एक-एक 'गोशे'<ref>रोम-रोम में</ref> से पैदा 'बुसअते-कोनो-मकाँ'<ref>विशाल ब्रह्माण्ड</ref>.
एक -एक 'खोशे' में<ref>कण-कण में</ref> पिन्हाँ 'सद-बहारे-जाविदाँ'<ref>सैंकड़ो शाश्वत ऋतुएँ</ref>
'बर्क़' की लहरों की बुसअत<ref>विद्युत् तरंगों की विशालता</ref> अल-हफीजो-अल-अमां'<ref>ख़ुदा की पनाह</ref> ।
और मैं सिर्फ़ एक कोंदे की लपक का 'राजदाँ'<ref>रहस्य का जानकार</ref> .
'राजदाँ' 'क्या मदहख्वां'<ref> गुण गायक</ref> और 'मदहख्वां' भी 'कमसवाद'<ref>तुच्छ</ref> ।
'नाबलद-नादान-नावाकिफ-नादीदः -नामुराद’<ref>अँधा, अनजान, मूर्ख</ref> ।
क्यों न फिर समझूँ 'सुबक'<ref>हल्का</ref> अपने सुखन के रंग को ।
नुत्क<ref>वाक़ शक्ति</ref> ने अलमास<ref>हीरे</ref> के बदले तराशा संग<ref>पत्थर</ref> को ।
" लैला-ए-आफाक"<ref>संसार रूपी रात</ref> पलटती ही रही पैहम<ref>निरंतर</ref> निक़ाब ।
और यहाँ 'औरत' 'मनाज़िर'<ref>दृश्य, मंज़र का बहुवचन</ref> 'इश्क' ' सहबा'<ref>शराब</ref> 'इन्कलाब' ।

पा रहा हूँ शायद अब इस 'तीरह'<ref>अंधकारमय</ref> हल्क़े से निज़ात ।
क्योंकि अब 'पेश-ए-नज़र' हैं 'उक्दा हाये-कायनात'<ref>ब्रह्माण्ड के गूढ़ रहस्य</ref> ।
ये भिंची उलझी जमीं ये 'पेच-दर-पेच' आसमाँ ।
'अल-अमानो-अल-अमानो-अल-अमानो-अल-अमां'<ref>खुदा की पनाह</ref> ।
इक 'नफ़स'<ref>श्वास</ref> का तार और ये 'शोरे -उम्रे- जाविदाँ<ref>अमर जीवन का शोर</ref> ।
इक कड़ी और उसमें जंजीरों के इतने कारवाँ ।
एक-एक लम्हे में इतने 'कारवाने -इन्कलाब'
एक-एक जर्रे में इतने 'माहताब-ओ-आफ़ताब'<ref>चन्द्र और सूर्य</ref> ।

इक 'सदा'<ref>आवाज़</ref> और उसमें ये लाखों हवाई दायरे<ref>विवर</ref> ।
जिसके 'शोबों'<ref>टुकड़े</ref> को 'अगर चुनले तो दुनिया गूंज उठे ।
एक 'बूँद' और 'हफ्त -कुलज़म'<ref>सात समंदर</ref> के हिला देने का जोश ।
एक गूंगा ख्वाब और ताबीर का इतना खरोश<ref>स्वप्नफल</ref> ।
इक 'कली' और उसमें सदियों की 'मताअ-ए- रंगों-बू'<ref>सुगंध और रंग की पूँजी</ref> ।
सिर्फ एक 'लम्हे'<ref>क्षण में</ref> की राग में और 'करनों' का लहू<ref>शताब्दियों का रक्त</ref> ।
हर कदम पर 'नस्ब'<ref>गड़े हुए</ref> और 'असरार' के इतने खयाम<ref>रहस्य के खेमे</ref> ।
और इस मंजिल में मेरी शायरी मेरा कलाम ।
जिसमें 'राजे-आस्मां ' है और ना 'असरारे-जमीं ।.
एक 'खस' एक 'दाना' एक 'जौ' एक 'ज़र्रा'<ref> तिनका भर</ref> भी नहीं ।
'नौ-ए-इंसानी'<ref>मानव जाति</ref> को जब मिल जाएगी 'रफ़्तार-ए-नूर'<ref>प्रकाश की गति</ref>
'शायरे-आज़म' का तब होगा कहीं जाकर 'ज़हूर'<ref>आविर्भाव</ref>
'खाक' से फूटेगी जब 'उम्रो-अबद'<ref>अमर जीवन</ref> की रौशनी ।
झाड़ देगी मौत को दामन से जिस दिन जिंदगी ।
जब हमारी जूतियों की 'गर्द' होगी 'कहकशां'<ref>आकाश गंगा</ref> ।
तब जनेगी 'नस्ले-आदम'<ref>मानव जाति</ref> 'शायरे-जादू-बयाँ’<ref>चमत्कारिक वर्णन का कवि</ref> ।
'बज़्म' में 'कामिल'<ref> चिंतन में सिद्ध</ref> ना 'फन्ने-शेर ' में 'यकता'<ref>काव्य कला में अद्वितीय</ref> हूँ में ।
और अगर कुछ हूँ तो ' नकीब-ए-शायरे-फ़रदां'<ref> भविष्य के शायर का सूचक</ref> हूँ मैं ।

शब्दार्थ
<references/>