भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शारदे माँ का मिला वरदान है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शारदे माँ का मिला वरदान है ।
व्यक्ति को जिस सद असद का ज्ञान है।।

मूर्ख को है कौन जब में पूछता
ज्ञानियों का ही हुआ सम्मान है।।

झूठ के आगे कभी झुकता नहीं
नीर क्षीर विवेक ही सद्ज्ञान है।।

है कमल की भांति रहता भीड़ में
मुक्त है मिथ्या जगत का भान है।।

एक दिन है छोड़ देना जगत को
किसलिए फिर देह का अभिमान है।।

लिप्त जग के बंधनों में है बंधा
मोह में रहना यही अज्ञान है।।

ताश के पत्तों से है जो घर बना
बाद क्षण रहता न शेष निशान है।।