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शिक्षित बेरोजगार / हरेराम बाजपेयी 'आश'

अमावस की स्याह रात,
बिखरे हुए सर्वत्र अनगिनत तारे,
प्रगति का हिसाब, बढ़ते हुए ,
शिक्षित वे बेरोजगार बेचारे।
भविष्य की चिन्ताओं से ग्रस्त,
म्लान मुख। टिमटिमाता प्रकाश।
शैक्षणिक उपाधि।
गगन गंगा सी कतारे।
लम्बी कतारें- नियोक्ता के द्वारे।
सुबह सूरज से साक्षात्कार,
कानूनी किरणों से उलझाव।
फिर वही,
निराशा-भटकाव,
मृतकाय लादे भागते सितारे। डूबते सितारे।
रोज का नाटक,
सूरज चला गया,
फिर वही स्याह रात,
हम देख रहे हैं आसमाँ में,
सूरज के किसी भाई को,
नौकरी पाए हुए किसी चाँद को,
चमचमाता चाँद,
टिमटिमाते सितारे,
शिक्षित बेरोजगार, बेचारे।
आरक्षण और भक्षण ने,
बदल दिये नीति- नियम- आचरण,
कानूनी, समीकरण।
जीवन कहाँ रहा, जब साथ ही लिया मरण,
अब वे किस द्वार जा पुकारे,
शिक्षित बेरोजगारी बेचारे॥