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शिला का खून पीती थी / शमशेर बहादुर सिंह
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शिला का खून पीती थी
वह जड़
जो कि पत्थर थी स्वयं
सीढियां थी बादलों की झूलती
टहनियों-सी
और वह पक्का चबूतरा
ढाल में चिकना :
सुतल था
आत्मा के कल्पतरु का ?