भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शुक्ला की समस्या / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शुक्‍ला ऐसा बहुत कुछ करता है
जिससे वह तिवारी लगे
कम से कम गुप्‍ता तो लगे ही
लेकिन इस चक्‍कर में वह बहुत कुछ ऐसा कर जाता है
जिससे वह वर्मा लगने लगता है
जिसे वह बिल्‍कुल पसंद नहीं करता
वर्मा बनने की तो वह सपने में भी नहीं सोचता

उसकी त्रासदी यह है कि वह संभले तब तक
लोग उसे वर्मा जी कहना शुरू कर देते हैं
वह कितना ही कहे, वह वर्मा जी नहीं, शुक्‍ला जी है
तो कोई नोटिस नहीं लेता
शुक्‍ला जी इससे परेशान है
तिवारी जी और गुप्‍ता जी को इससे खुशी बेहिसाब है.