भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्यान शिल्प / अनुराधा महापात्र / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
जहाँ पर श्यान<ref>चिपचिपापन, दलदलापन, चिपचिपाहट, लसलसहाट</ref> शिल्प,
आकाश तले मिल गया है
वहाँ करो करुण दृष्टिपात
मेरे इस गीत से जानती हूँ
मिट गया है निष्ठुर सन्ताप ।
धूसरता मे ही शान्त और अशेष
जहाँ एकान्त मे सुर को बाँध पाई हूँ
मै भी आज पंछी के नैनों के श्रोत मे
मरणांतिक कुछ तो खोज पाई हूँ ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार
शब्दार्थ
<references/>