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श्रम का सूरज / कोदूराम दलित

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श्रम का सूरज उगा, बीती विकराल रात,
भागा घोर तम, भोर हो गया सुहाना है ।
आलस को त्याग–अब जाग रे श्रमिक, तुझे
नये सिरे से नया भारत सिरजाना है ।
तेरे बल- पौरुष की होनी है परीक्षा अब,
विकट कमाल तुझे करके दिखाना है ।
आया है सृजन-काल, जाग रे सृजनहार,
जाग कर्मवीर, जागा सकल ज़माना है ।

फावड़ा-कुदाल, घन-सब्बल सम्हाल, उठ
निर्माणकारी, तुझे जंग जीत आना है ।
फोड़ दे पहाड़, कर पाषाणों को चूर-चूर
खींच ले खनिज, माँग रहा कारख़ाना है ।
रोक सरिता का जल, प्यासी धरती को पिला
इंद्र का बगीचा तुझे यहीं पै लगाना है ।
ऊसर औ’ मरू-भूमियों का सीना चीर ! तुझे
अन्न उपजाना है औ’ भूखों को खिलाना है ।

जाग रे भगीरथ-किसान, धरती के लाल,
आज तुझे ऋण मातृभूमि का चुकाना है ।
आराम-हराम वाले मंत्र को न भूल, तुझे
आजादी की गंगा को , घर-घर पहुँचाना है ।
सहकारिता से काम करने का वक़्त आया
क़दम मिला के अब चलना–चलाना है ।
मिल-जुल कर उत्पादन बढ़ाना है औ’
एक-एक दाना बाँट-बाँट कर खाना है ।