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श्रोता / हरीश प्रधान
Kavita Kosh से
मैंने कहा
खूब... खूब...
तुमने गरदनें हिलाईं
स्वर के आरोह
अवरोह से
तालियाँ दे डालीं,
पर
श्रोता का धर्म
श्रवण
सिर्फ श्रवण है
यह सिद्ध किया
ग्रहण कुछ किया नहीं।