भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संकेत / अग्निपुष्प
Kavita Kosh से
एना होइत छैक भाइ
हरियरकंच बाध-बोनक
सबटा धानक खखरी भ' जाइत छैक
मेहक चारूकात घुमैत
बड़दक मुँह में जाबी लगा देल जाइत छैक
ललाट सँ चुबैत घाम
नासिकाग्र धरि अबैत-अबैत सुखा जाइत छैक
ह' रक लागनिक ठेला
बेर-बेर कजरौटी पर पड़ैत छैक
आ
पन्द्रह दिनक अन्हरिया सँ त्रस्त
आकाशक ओरियानी मे
एकटा कचिया हाँसू चमकि उठैत छैक।