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संसद में कवि सम्मेलन / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
एक दिन संसद में कवि सम्मेलन हुआ
सबसे पहले प्रधानमंत्री ने कविता पढ़ी
विपक्षी नेता ने उसका जवाब कविता में दिया
बाकी लोगों ने तालियां बजायीं
कुछ लोग हंसे कुछ लोगों को हंसना नहीं आया
आलोचकों को अपनी प्रतिभा प्रकट
करने का सुनहला अवसर मिला
टी.वी. कैमरों की आंखें चमकीं
एंकर निहाल हो गये
खूब बढ़ी टीआरपी
टी.वी. चैनलों पर हत्या और भ्रष्टाचार से
ज्यादा मार्मिक खबर मिली
इस लाफ्टरशो को विदूषक देखकर प्रसन्न हुए
एक विदूषक ने कैमरे के सामने ही तुकबंदी शुरू कर दी
आधा पेट खाये और सोये हुए लोग हैरान थे
यह संसद है या हंसीघर
हमारी हालत पर रोने के बजाय हंसती है