भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संसार / जया जादवानी
Kavita Kosh से
वह उठाती है
हथेली पर
पूरा का पूरा संसार
रच देती
मेहंदी-सा
तुम सिर्फ़ ख़ुशबू लेते हो
और एतराज करते हो।