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सजनी अत्तेॅ की जानतै / अनिल कुमार झा
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					मोरकोॅ घुसी के सुतलोॅ छी लेकिन मने अत्तेॅ की मानतै, 
कष्ट मनोॅ के केना होय छै सजनी अत्तेॅ की जानतै। 
अखनी बितलै आसिन हम्में मेला कत्ते घुमैने छियै
कजरा बिंदी, चूड़ी, कुमकुम जेकरा वहाँ सजैने छियै, 
हवा महकलोॅ तन-मन छूबी महकी-महकी गेली छै
मौसम रो सुर साज सजैने रजनी अत्तेॅ की रागतै, 
कष्ट मनोॅ के केना होय छै सजनी अत्तेॅ की जानतै। 
घोॅर दुआरी के की चिंता जबे खेत रो करना रक्षा छै
मीत प्रीत सब भूल भुलैया लागै केन्होॅ ई ईच्छा छै, 
रात बीती के बने पहाड़ी छनै-छनै बढ़लोॅ जाय जौं
आय जुआनी केरोॅ अन्हरिया कही कहानी की कानतै, 
कष्ट मनोॅ के केना होय छै सजनी अत्तेॅ की जानतै।
	
	