Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 18:05

सजाये रखना सदैव जीवन-उत्सव / सुरेश चंद्रा

सैरंध्री!

निशा के निखरे
प्रातः बिखरे
दीये पुनः सँवारना

बुहारना,
शेष हुई रात्रि

अवशेष से, स्मिति,
सृजन चुन लेना

मन के झरोखों, अट्टारिकाओं में,
रक्षित बीन रखना हर्ष, आस, उल्लास

सजाये रखना सदैव, जीवन-उत्सव
सदा-सदा के लिये.