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सड़क / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़
Kavita Kosh से
है यह लम्बी
और ख़ामोश सड़क।
मैं चलता हूँ अन्धेरे में और गिर जाता हूँ ठोकर खाकर
उठता हूँ और क़दम बढ़ाता हूँ बिना देखे
रौंदता हूँ मूक पत्थरों और सूखे पत्तों को।
कोई मेरे पीछे भी चल रहा है :
यदि मैं रुकता हूँ तो वह भी रुक जाता है
मैं दौड़ता हूँ तो वह भी दौड़ता है,
मैं मुड़ता हूँ —
नहीं है वहाँ कोई भी।
हर चीज अन्धेरे में,
नहीं कोई बाहर का रास्ता,
मुड़ता रहता हूँ एक गली से दूसरी गली में
जो पहुँचती हमेशा सड़क तक
जहाँ न तो कोई मेरी प्रतीक्षा करता है न ही आता है पीछे,
जहाँ मैं करता हूँ पीछा एक आदमी का
जो ठोकर खाकर गिरता है,
वह उठता है और जब मुझे देखता है
तो कहता है —
नहीं है कोई भी।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’