सतवाणी (28) / कन्हैया लाल सेठिया
271.
रामधणख रो सतलड़ो
बांध बीज री पाग,
बादळ आयो बीन बण
बड़ा रेत रा भाग,
272.
अंध वासना उरवषी
चाह मेनका आप,
ओळख विसवामित्र है
थारै मन रो पाप,
273.
सूरज रै तप बळ चढयो
गगन पांगळो नीर,
तिलक कर्यो बिजली समझ
लूंठा इण रै सीर,
274.
नैण कोटड़ी में बसै
समनै भेळी सांच,
अकन कुंआंरी आण दै
कद निज सत नै आंच ?
275.
सहस धार अमरित झरै
के आणद रा पार ?
पण कविन्यां नै लत पड़ी
फिरै जैर रै लार,
276.
घुमा चकरियो वेग स्यूं
थिर ज्यूं दिखसी चाल,
करै अथग थितप्रग करम
दीसै पड़या निढाळ,
277.
वगत वगत री बात है
कुण राजा कुण रंक ?
पड़ी ठोकरां धूळ री-
आभै चढगी खंख,
278.
सावळ सबड़ी राबड़ी
पाड़ी मती सपीड़,
मत कर घणां सुवादिया
देसी काळ गदीड़,
279.
थारै घर रै आंगणै
जड़िया रतन हजार,
तनैं दीखसी भोळिया
कचरो नाख बुहार,
280.
दीठ नहीं तो सबद है
कलम चिड़ी री बींठ,
मत कर काळो बापर्यो
धोळो कागद नीठ,