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सतवाणी (9) / कन्हैया लाल सेठिया

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81.
पगां पड़ै गेला हुवै
जे मंजिल रो ग्यान,
नही’स मारग बापड़ा
सूरदास रा बाण,

82.
मजल बता पैली मनैं
जद देस्यूं मैं दीठ,
मजल नहीं कोई जणां
तू अवधूत वसीठ,

83.
आळै बैठी चिड़कली
दीठ गई गिगनार,
निरविकार दीख्यो जणां
उड़गी पांख पसार,
84.
नभ माचो दिन सोड़ियो
कामळ काळी रात,
सोणै रो मिस कर करै
काळ जीव री घात,

85.
दीठ पांगळी जा परी
जठै दिखै भख-भोग,
बणसी थिर आ अचपळी
जे मन साधै जोग,

86.
ल्यासो लाडी मन मरद
नखराळी बुध नार,
जाया सुख दुख सुत इस्या
नित री गोधम त्यार,

87.
भाण सिळगती थेपड़ी
ख्ंिाडगी बुझती वार,
राख रात ऊपर पड़्या
नखत सजल अंगार,

88.
भाण मिरकली घीव सो
दिन आटै री खीर,
भर्यो गगन रो बाटको
काळ निवेड़ै पी’र,

89.
पग धरती, सूंडी अनल
नाक पून, चख नीर,
मन अम्बर, तत पांच री
टमरी नांव सरीर,

90.
सत अरजण रो विसरजण
मा रै दूध समान,
दान नही बो विष वमन
अरजित कुकरम पाण,