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सदस्य:Azad bhagat
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--Azad bhagat 11:54, 7 जनवरी 2012 (CST)जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
आज मैं बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
जज्बातों के कुछ बंधन है
जो देते मुझको उलझन है
उलझन में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
मैं भी कैसा दीवाना था
औरो में खुश रहता था
अपनों में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
आजाद भगत--Azad bhagat 13:01, 12 अक्टूबर 2011 (CDT)
न जाने क्यूँ,
कभी आंसू बहाते है कभी वो खिल-खिलाते है ,
हमें हमसे चुराकर वो हम ही से रूठ जाते है ,
अधर से छेड़कर बाते वो नए किस्से बनाते है ,
करके इशारे निगाहों से हम ही को आज़माते है ,
न जाने क्यूँ.
आजाद भगत--Azad bhagat 11:54, 7 जनवरी 2012 (CST)