भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सदस्य:Dilsher Khan
Kavita Kosh से
ग़ज़ल
घौसला जब भी डाल पर रखना! तिनका तिनका संभाल कर रखना! राह में सेंकड़ों बिछे कांटे! हर क़दम देख भाल कर रखना! एक दिंन तुमसे मिलने आऊँगा! अपने आँसू संभाल कर रखना! क्यूँ चमकते हो जुगनुओं की तरह! खुद को शम्मा सा ढाल कर रखना! अब तो घर में भी है बहुत मुश्किल! अपनी इज़्ज़त संभाल कर रखना! काम है सिर्फ ये सियासत का! घर में गुंडों को पाल कर रखना! अच्छी आदत नहीं है काम कोई! आज का कल पे टाल कार रखना! सिर्फ इतनी सी इल्तिजा है मेरी! इस ग़ज़ल को संभाल कर रखना! = दिलशेर "दिल" दतिया