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सपना बलमुवां के / परमानंद ‘प्रेमी’
Kavita Kosh से
सखि हे सपना मं ऐलै निर्मोही बलमुआं घोघऽ उघारै ना
बाबा महलियाँ में सुतली छेलों,
निनों सें निभोर।
चोखै सें पियबां आबी खिचलकऽ,
रेशमीं सड़िया के कोर॥
बलमुवां घोघऽ उघारै ना सखि हे सपना में ऐलै निर्मोही
रितु वसन्ती सगरे मस्ती,
कुहकै छेलै कोयलिया।
खिड़की सें छिटकीक’ आबै छेलै,
चाँदी रंगलऽ इंजोरिया॥
बलमुवां घोघऽ उघारै ना सखि हे सपना में ऐलै निर्मोही
सोना थारी में भौजना परोसी,
पिढ़िया बिछैलों ऐंगना में।
बिनियां डोलाय पियबा क’ जमैलों,
सुनों छेलै भवनमां॥
बलमुवां घोघऽ उघारै ना सखि हे सपना में ऐलै निर्मोही
मुर्गा बोललै भोर होय गलै,
टूटी गेलऽ भरखर निनमां।
भरोकऽ सपना अकारथ नैं होथौं,
ऐथौं आजे सजनमां॥
बलमुवां घोघऽ उघारै ना सखि हे सपना में ऐलै निर्मोही