भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने / दीप्ति गुप्ता
Kavita Kosh से
अजनबी चेहरों में, अपनों को ढूँढ़ते हो
सहरा में क्यों गुलिस्तां खोजते हो!
बंजर जमीन में, फूलों को रोपते हो
प्यार बेवफा से, वफा की सोचते हो!
आँखों में कोहरा, क्यूँ सितारों को खोजते हो
दोस्ती बदकिस्मती से, किस्मत को कोसते हो!
खिजाओं को न्योत के, बहारों की सोचते हो
संगदिल जमाने के संग खुशियों की सोचते हो!