भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने / भरत ओला
Kavita Kosh से
यह
पाँच नम्बर सैक्टर का
लौंडा तो है नहीं
जो
‘बैंडिट क्वीन’
या
‘फायर’
देख पाएगा
अंतडियों की आग
तो बुझती नही
जलने से पहले
तीली बुझ गई
अब राख के ढेर में
चिंगारी ढूंढने की गुस्ताखी
क्या खाक कर पाएगा
जो कुछ चाहता है
सपने में कमाता है
दिहाड़ी में तो
फकत
पेट लिवाड़ी कर पाता है।