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सपनों का मर जाना / प्रियंका गुप्ता
Kavita Kosh से
कवि पाश ने कहा था
ख़तरनाक होता है
किसी सपने का मर जाना
सपने
जो पालते हैं अपने भीतर
न जाने कितनी ज़िन्दगियाँ
सच,
महकती चहकती
खिल-खिल करती
कभी ठहरी नदी सी
कभी गहरा समन्दर
सपनो के बिना
अधूरा है आदमी
और शायद
अकेला भी
आदमी के ज़िन्दा रहने के लिए
ज़रूरी हैं सपने
वे सपने
जो टूट कर तोड़ते हैं
तो जीने के लिए जोड़ते भी हैं
अतः
सपनों को मरने मत दो
बेहद ख़तरनाक होगा
मर जाना
उनका यूँ ही।