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सपनों की दुनिया-4 / देवेन्द्र कुमार देवेश
Kavita Kosh से
क्या कभी सम्भव है
कि सोते हुए देखें हम
ऐसे सपने
जो जागने पर खोएँ नहीं
शायद यह सम्भव नहीं
इसलिए देखना चाहता हूँ मैं
जागी हुई दुनिया में
जागे हुए सपने।