भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपूत / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँच लिये सतसंग किये, जो हिये हरिनाम निरन्तर लेते।
पाँचहुको परपंच गवो पचि, या मनको ममता नहि देते॥
धरनी कह राम प्रताप दशो दिशि, अस्तुति भाव कहरैं जन जेते।
काह कपूत बहूत भये होइ, एक सपूत तरे कुलकेते॥17॥