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सपेरा / हरिपाल त्यागी
Kavita Kosh से
वह एक सपेरा है!
रेखाएं-
उसकी पिटारी में
कुंडली मारे पड़ी हैं।
वह उन्हें उंगलियों पर नचाता है
रेखाएं उसकी गुलाम हैं
तूलिकाघात से घबराकर
रेखाएं कमर झुका देती हैं
और दौड़ता हुआ घोड़ा
सामने होता है!
सपेरा रेखाओं को पुल बनाता है।
पुल-जो झोंपड़ी से राजमहल को जोड़ता है।
फिर घोड़े पर सवार हो,
पुल पार कर,
राजमहल में जा पहुंचता है सपेरा।
रंग-रेखाएं और आकार
सब पीछे छूट जाते हैं,
अवाक, निर्जीव और निस्तेज!
सपेरा लम्बी दाढ़ी लटकये
राजदरबार में बीन बजाता है।
रेखाओं और रंगों के
करतब दिखाता है।
और-
तालियों की गड़गड़ाहट में
दम तोड़ देती है
एक और संस्कृति!