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सफर-ए-आगही / परवीन फ़ना सय्यद
Kavita Kosh से
अजीब है
दश्त-ए-आगही का सफ़र
वफ़ा की रिदा में लिपटी
बरहना क़दमों से चल रही हूँ
तपे हुए रेगज़ार में भी
मगर चुभन है न पाँव में कोई आबला है
थकन का नाम ओ निशाँ नहीं है