भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफेद झूठ / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
सुबह से शाम तक
आदमी
कितना झूठ बोलता है ?
कितना पढ़ता है ?
कितनों को पढ़ाता है ?
कितनों को झूठ बोलना सिखाता है
मालूम नहीं !
मासूम से एक बच्चे ने कहा
मुझे पहले ही पता था
कि तुम नहीं बोलोगे ?
क्या उस व्यक्ति ने तुम्हें
सच बोलने को मना किया था ?
ऐसा क्यूं किया होगा ?
नन्हा बच्चा
इस तरह के कथन को
ऐसे सुन, समझ रहा था
जैसे कि अचानक कार रूकी और
उससे कुतुब मीनार का
रास्ता आगरा के
ताजमहल के पास पूछा हो ।