भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबसे ताकतवर होता है.../ वर्तिका नन्दा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे सपने अपनी जमीन ढूंढ़ ही लेते हैं
बारिश की नमी
सूखे की तपी
रेतीले मन
और बाहरी थपेड़ों के बावजूद

खाली पेट होने पर भी
सपने मेरा साया नहीं छोड़ते
चांद के बादलों से लिपट जाने
सूरज के माथे पर बल आने
अपनों के गुस्साने
आवाज के भर्राने पर भी
ये सपने अपना पता-ठिकाना नहीं बदलते

सपनों की पंखुड़ी
किसी के भारी बूटों से कुचलती नहीं
हंटर से छिलती नहीं
बेरुखी से मिटती नहीं

सपनों का ओज
उदासी में घुलता नहीं
टूट कर बिखरता नहीं
अतीत की रौशनियों की याद में
पीला पड़ता नहीं

क्योंकि वे सपने ही क्या
गर वो छिटक जाएं
मौसमों के उड़नखटोलों से
क्या हो सकता है
इतना निजी, इतना मधुर, इतना प्यारा
सपनों की ओढ़नी
सपनों की बिछावन
सपनों की पाजेब
सपनों का घूंघट
सपनों की गगरी

काश!, कि तुम होते आज पास पास
तो एक सुर में कहते
सबसे खतरनाक होता है
सपनों का मर जाना
और मैं कहती
सबसे ताकतवर होता है
सपनों का खिल-मिल जाना
हिम्मती हो जाना
फौलादी बन जाना
कवच हो जाना
हथेलियों की लकीरों को
आलिंगन में भर लेना कुछ इस तरह कि
सपने बस अपने ही हो जाएं
कि सपने
अपनों से भी ज्यादा अपने हो जाएं

हां, सबसे ताकतवर होता है
सपनों का खिल-मिल जाना