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सब्र टूटा अपावन हुए / आर्य हरीश कोशलपुरी
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सब्र टूटा अपावन हुए
राम से लोग रावन हुए
धूर्तों से सदाचार पढ़
आठ से लो अठावन हुए
दर्द का कोई हल ही न था
अश्क़ आंखों में सावन हुए
एक ही कंस था कृष्ण जी
बीस से आज बावन हुए
पूरी बसुधा न हो एक घर
सरहदों पे बिछावन हुए
आबे गंगा भी हैरत में है
देश में इतने पावन हुए