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सब लोग देखते आग... / ठाकुरप्रसाद सिंह

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सब लोग देखते आग लगी त्रिकुटी की

रे कौन देखता आग लगी इस जी की


मैं अपने भीतर जलती

जैसे बोरसी की आग

धधक पात पतझर के

जल जाते, जंगल के भाग


सब लोग देखते आग लगी त्रिकुटी की