भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभाव / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे
सोधतां
हीरो
पड़ज्या
आंख में
रावळियो
फिरै देतो
रेत नै आळ
काढतो गाळ
पणं खिमावान
धरती
जाणै मिनख रो
नुगरो सभाव !