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समर / नीलोत्पल
Kavita Kosh से
दिन भर हम युद्ध करते हैं
अपने जीने के साथ
दिन भर हम भागते हैं
ख़ुद से बचने के लिए
दिन भर हम उलाँघते हैं
अपने समय की अंतहीन दूरियाँ
दिन भर हम पाटते हैं
अधबने रिश्तों का अलगाव
दिन भर हम होते हैं
रेशा-रेशा, फाहा-फाहा
दिन भर हम जो पाते हैं
वह हमारे भीतर
जोड़ता है कुछ
और तोड़ता भी
जिसके लिए अगले दिन
पुनः समर है ।