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समाचार है अद्भुत / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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समाचार है अद्भुत
जीवन का
अब बर्बादी
करे मुनादी
संसाधन सीमित
सड़े भले सब
किन्तु करेगा
बंदर ही वितरित
नियम अनूठा है
मानव-वन का
प्रेम-रोग अब
लाइलाज
किंचित भी नहीं रहा
नये नशे ने
आगे बढ़कर
सबका दर्द सहा
रंग बदलता
पल-पल तन-मन का
धन की नौकर
निज इच्छा से
अब है बुद्धि बनी
कर्म राम के
लेकिन लंका
देखो हुई धनी
बदल रहा
आदर्श लड़कपन का