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समाधान / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'
Kavita Kosh से
नदी उदास थी
कहना चाहती थी कुछ
पथिक से
जो थक कर बैठ गया था
उसके किनारे
और अँजुरी में भरा जल
हिक़ारत से देख रहा था
नदी ने दुःख से
मूँद ली आँखें
नहीं होना चाहती वह अभिशप्त
रेत के नीचे दब कर
कोर से बह निकलें
उससे पहले ही
पी गई आँसुओं को
आँसू पीना
स्वम् को तरल बनाए रखने का
हमारे दिए गरल से बचने का
एकमात्र समाधान बचा है
उसके पास