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समाधि-दो / तुलसी रमण

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अनंत आकाश में

घनी उड़ रहीं
        
       मूक मधुमक्खियाँ

मस्तिष्क के भीतर
गहरे सन्नाटे में

जैसे घूम आता
        ब्रह्माण्ड
मौन हैं पहाड़
अपने में भर लेने को

फाहा
-फाहा स्पर्श