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समुद्र से रिक्त लौटने के बावजूद / नीलोत्पल

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मैं सिर्फ़ इंसानों को जानता हूँ...
जिनके अपने मिटाए कई इतिहास हैं
जिनके पास सच नहीं,
उलझे हुए तमाम चीज़ों से
ढोकर लाए ख़ाली नावें
अपने थके कंधों पर

वे कहीं नहीं पहुँच पाए
हालांकि वे खोजते रहे रास्ते
उन्हें जल्दी नहीं थी
समय से दूरी बनाए रखी
जो नहीं जिया, नहीं कह पाए
अंत तक नहीं लिखा

सुबह-सुबह के वक़्त
मुझे यह बात याद आई
जो गयी रात थककर सो गए
ख़र्च दिया जो लाए थे
दिनभर की जोड़-तोड़ के बाद वे ख़ाली थे
लेकिन चेहरे पर मुस्कान थी
मैं हैरान हुआ
जब वे गले मिले

वे फिर पुरानी कहानी दोहराने वाले थे
मैं जानता था
लेकिन नहीं जानता था कि
तरक़्क़ी की इमारत भले नष्ट हो जाए एक दिन
बचेगा यही जो अनकहा रह गया

जो बीज ज़मीन पर बिखरे पड़े थे
वे उग आए एक दिन
मैंने बहुत सोचा
लेकिन वह पेड़ नहीं था भीतर
जो झरने के बाद भी उग आता

इंसान ने हर बार यह संभव किया कि
बिना रास्तों के भी बनाए रखा दुनिया और ख़ुद को
समुद्र से रिक्त लौटने के बावजूद