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सवार / जीवनानंद दास

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"लिख डालो कविता एक आप ही", कहा थकी
हँसी हँस, छायामूर्ति ने जवाब नहीं दिया,
वृथावादी बैठा भाष्य, टीका, स्याही, काग़ज़ की
ढेरी पर, काव्य-रचना का अजाब नहीं लिया,
सिंहासन-आरूढ़ अजर-अमर बन लिया।

प्राध्यापक -- दन्तहीन, आँखों में कीच पोच,
वेतन हज़ार, उसके ऊपर हज़ार डेढ़
मरे हुए कवियों के शवों से कीट नोच --
मृतकों ने चाहे थे क्षुधा, प्रेम, ऊष्मा ढेर,
खेले थे शार्क-भरी लहरों में लोट-फेर ।

शिव किशोर तिवारी द्वाराम मूल बांग्ला से अनूदित

और लीजिए, अब पढ़िए यही कविता मूल बांग्ला में
 সমারুঢ়

"বরং নিজেই তুমি লেখনাকো একটি কবিতা "
বলিলাম ম্লান হেসে, ছায়াপিণ্ড দিল না উত্তৰ
বুঝিলাম সে তো কবি নয়,--সে যে আরুঢ় ভনিতা:
পাণ্ডুলিপি ভাষা টীকা কালি আর কলমের 'পর
সিংহাসনে বসে আছে -কবি নয় - অজর অক্ষর
অধ্যাপক --দাঁত নেই--চোখে তার অক্ষম পিঁচুটি
বেতন হাজার টাকা মাসে --আর হাজার দেড়েক
পাওয়া যায় মৃত সব কবিদের মাংস কৃমি খুঁটি
যদিও সে সব কবি ক্ষুধা প্রেম আগুনের সেঁক
চেয়েছিল --হাঙরের ঢেউয়ে খেয়েছিল লুটোপুটি