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सवाल / भरत ओला
Kavita Kosh से
नहीं जानता
डेढ़ साल का गुड्डू
कि उसका बाप
अब कभी नहीं लाएगा
उसके लिए
निकर और बनियान
माँ को भी नहीं देगा
लालटेन की मंद रोशनी में
पेंट की जेब से निकाल
अखबार में छुपा बंडल
माँ की वह मंद-मंद मुस्कान
लाज से सरसाया हुआ मुखड़ा
पुलकित सी आँखें जो
अटक जाती थीं
बाप के चेहरे पर
नहीं देख पाएगा
आईना घुटनों में थामें
मांग में सिंदूर भरती
सजती-संवरती मां को
नहीं सुन पाएगी मां
किवाड़ की ओट में खड़ी
चुड़ले के सिणगार का खत
नहीं जानता
डेढ़ साल का गुड्डू
मां की सूजी आँखों से
झरते आँसुओं का राज
नहीं समझ पाता
मां के सदा सुरंगे होठों पर
जमी पड़ी पपड़ी का कारण
वह पूछना चाहता है
तुझसे
मुझसे
हम जानते है
हमारे पास नही है
उसके सवालों के
मुकम्मल जवाब।