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सवाल अब भी मौजूद है (कविता) / प्रताप सहगल

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हरिया के जन्म की तारीख
उसे नहीं मालूम
न उसके बाप को
बस वह इतना जानता है कि
विभाजन से तीन साल पहले
वह पैदा हुआ था.
स्कूल में भर्ती करवाते वक्त उसके पिता ने
फार्म में जो तारीख भर दी थी
वही हो गई उसकी जन्म तारीख.

उसे अभी तक याद है जब उसने
पहली बार मदरसे में कदम रखा था
उसकी माँ उसे छोड़ने गई थी
और उसके बदन पर सिर्फ एक चड्ढी थी.
उसे यह भी याद है कि
उसके मास्टर का नाम अंगुलीराम था.
माँ चली गई थी और पीछे से वह भी
खिसक कर घर लौट आया था.
मां ने उस रोज़ बताशे बाँटे थे
सबसे ज़्यादा हरिया ने ही खाए थे बताशे
और शाम तक नए कायदे पर काखिल पोत दी थी.
जब दूसरी क्लास में पहुंचा
तो नेकर पहनने लगा था
और रोज़ पोतने लगा था तख्ती
करने लगा था जमा घटा.
कारपोरेशनी स्कूलों की बदनामी का
वह भी हो गया था शिकार
यूं वह नहीं जानता था कि
बदनामी किस चिड़िया का नाम है.
उसे याद है वो दिन
जब सभी लड़के अपनी-अपनी तख्ती उठाए खड़े थे
सभी ने हल किए थे सवाल
हरिया भी उनमें से एक था.
मास्टर जी बेंत घूमाते एक के बाद एक असहाय
कबूतर की कापी जाँच रहे थे.
हरिया ने तख्ती उठाई
मास्टर जी ने नज़र और चटाख...
सिर्फ एक/अकस्मात/और
हरिया की नेकर गीली हो गई थी
तभी हरिया का रिश्ता नापसन्दगी के साथ हुआ.
उसे अब तख्ती पसन्द नहीं/न बस्ता/न मास्टर/न स्कूल.
कक्षाएं बदलीं/बदले स्कूल/साथी-सहपाठी/और शहर
कस्बे का हरिया एक बड़े शहर में आ गया.
शहर के साथ उसका वास्ता सिर्फ एक ही सड़क तक था
उम्र बढ़ने के साथ-साथ हरिया का कद भी बढ़ता गया
और उसे बस्ते का बोझ हल्का लगने लगा.
वह लगाने लगा प्रश्नचिह्न/परम्परा के सामने/
माँ-बाप के सामने/ईश्वर के सामने/
एक-एक करके प्रश्न बढ़ते गए और कोई भी
जुटा नहीं पाया सामर्थ्य
जो काट सके इन प्रश्नों को
हरिया गले में बस्ता लटकाए
कहीं भी सड़क के किनारे बैठ जाता
और फिर नाचने लगते उसके सामने सवाल?
यह गाड़ियाँ किन लोगों की हैं?
कौन लोग सफर करते हैं हवाई जहाज़ में
कौन तोड़ते हैं मकान?
आग क्यों लगती है? बलवे क्यों होते हैं?
ईश्वर कहाँ है? कहाँ है ईश्वर?
तभी हरिया के घर एक दिन पुलिस आई
और हरिया के पिता को साथ ले गई.
तब पहली बार हरिया ने पुलिस-स्टेशन देखा था
पुलिस स्टेशन में अपने पिता के गाल पर पड़े थप्पड़ से
उसने यही नतीजा निकाला
पुलिस और कसाई में सिर्फ वर्दी का फर्क है!
एक बेंच पर बैठे-बैठे
कसती रहीं उसकी नसें
भिंचती रहीं मुट्ठियाँ
जलती रहीं आंखें
उसने फैसला किया कि एक दिन
वह पुलिस स्टेशन को आग लगा देगा
लेकिन न जाने क्यों वह लगातार टालता गया फैसला
और इस टालने के दौर में वह
कई साल और बड़ा हो गया.
बड़ा होने की प्रक्रिया में ही उसे
भूख का अहसास हुआ.
भूख सिर्फ लगती ही नहीं
तोड़ती भी है.
भूख की शक्ल में उसने एक राक्षस देखा
एक दिन सुबह उठकर उसने
उस राक्षस की हत्या कर दी.
अब वह उस लाश पर सवार सारे शहर में घूमता है
साईकिल पर सवार हो कभी बेचता है संतरे
कभी सेब और कभी किताबें.
बचपन में उसने कारपोरेशन के शर्मनाक स्कूल देखे थे
उसी कारपोरेशन का सामना अब यूं हुआ
कि एक दिन वे सामान सहित उसकी साईकिल छीन कर ले गए
उसने फैसला किया
एक दिन सुरंग लगाकर इसे भी उड़ा देगा
फिलहाल उसे मिटानी थी पेट की आग
आग जो जलती ही नहीं जलाती भी थी.
हरिया ने सिर पर उठा लिया खोमचा
और आग पर सवार हो गया.
एक फैक्टरी के बाहर
बेचता था कुलचे चने
कुछ गालियाँ और कुछ सपने
एक दिन गालियों और सपनों ने
एक सीढ़ी की शक्ल अख्तियार कर ली
वह सीढ़ी सीधी फैक्टरी के अन्दर चली जाती थी
और इस तरह उसके सामने एक और दुनिया खुली.
वह चलाने लगा मशीनें
सुनने लगा फोरमैन की झिड़कियां
पीने लगा बीड़ी और देखने लगा लड़कियां.
तभी उसने गौर से उस आदमी को देखा
जो रोज़ गाड़ी में आता और चला जाता था
हरिया की दुनियां ही बदलने लगी
उसकी योजनाएं बदलने लगीं
उसका दिमाग बदलने लगा.
अब उसके सामने सवाल यह नहीं रहा कि ईश्वर कहां है
सवाल यह पैदा हुआ कि यह आदमी
गाड़ी पर क्यों आता है?
जबकि हमें मिलती हैं गालियां
और यह फोरमैन
ये काम करने वाले लोग
और उन लोगों के साथ जुड़े और लोग.
दो मशीनें एक साथ दनदनाती रहतीं
सामने वाली मशीन वह जब चाहे बन्द कर सकता था
पर बन्द नहीं कर सकता था वो सोचों की मशीन.

सिर के अन्दर की दनदनाहट उसे हिलाने लगी थी
उठने लगे थे फिर कई सवाल
और वह बदहवास ढूँढता फिरता था जवाब
आम जवाब लगातार यही मिलता रहा
जैसे जिसके कर्म.
हरिया उधेड़ने लगा कर्म की खाल
नोचने लगा खाल के भी बाल
इस ज़रिए उसका सम्पर्क उन लोगों से हुआ
जिनसे उसने यह जाना कि
कर्म के बहाने शोषण सदियों से जारी है
और उसने खुद ही फैसला कर लिया
अब लड़ने की मेरी बारी है.
लड़ाई का जो फैसला वह बचपन से टालता आ रहा था
और नहीं टला
और लड़ाई के पहले ही दौर में
वह मज़दूरों का नेता हो गया
हरिया समझदार है
हरिया ईमानदार है
हरिया निडर है
हरिया हमदर्द है
हरिया अब सिर्फ शब्द नहीं
कुछ होने या न होने की सम्भावना है
हरिया मशीन के सामने मौजूद है
अब वह गेट के बाहर भाषण दे रहा है
थोड़ी देर पहले वह कैण्टीन में था
ताश खेलता हरिया/गाता हरिया/बतियाता हरिया
झड़प करता हरिया/लड़ता हरिया
हरिया नाम नहीं विचार हो गया
शब्द नहीं अर्थ हो गया/मत नहीं सर्वसम्मत हो गया
और गाड़ी के पहियों की हवा सरकने लगी.
गाड़ी के अन्दर बैठा इन्सान काईयां था
उसने हरिया को
मिल की हालत-सुधार कमेटी का अध्यक्ष बनाकर
अध्ययन करने के लिए जर्मनी भेज दिया.
जर्मनी से फ्रांस/फ्रांस से रूस
और रूस से अमेरिका
उसने जल्द ही नाप लिया ग्लोब का आकार
बस गई उसके जहन में स्काच की बू
यहाँ तक कि वह अब सूंघ कर
ब्रांड का नाम बता सकता था
दस लोगों को साथ पिला सकता था
कुछ सपने सजा सकता था
और मोड़ सकता था
अपने इर्द-गिर्द के वक्त की दिशा.
उसने कर ली थी बड़े वक्त की पहचान
पर कैद था वक्त की छोटी छतरी में
और समेट रहा था उस छतरी के ज़रिए
तमाम मजदूरों को.

हरिया मोटाने लगा
अपने खिलाफ उठी किसी भी आवाज़ को दबाने लगा
बढ़ाने लगा अपने वक्त की ताकत
जो सवाल कभी उसने उठाए थे
उनकी तह पर तह जमा कर
ऊपर खुद बैठ गया.
हरिया अब सिर्फ हरिया नहीं रहा
वह हरि सिंह हो गया
क्योंकि मिल मालिक ने भरी सभी में उसे
हरी सिंह जी कहकर सम्बोधित किया था.
(लेकिन हम क्योंकि शुरू से ही उसे हरिया नाम से पहचानते हैं, इसलिए हम नहीं बदलेंगे उसका नाम)
हां तो हरिया ने उन सब सवालों को
अपने वज़न के नीचे दबा लिया
अब सिर्फ विशालकाय हरिया नज़र आता है
शेष सब कहीं खो जाता है.
हरिया ने सिर का खोमचा कभी का उतार फेंका था
और बन गया था खोमचेबाज़
एक से एक बड़े खोमचे लगा लिए उसने
और बाँटने लगा मज़दूरों को
आश्वासन/भत्ते/बोनस और रेवड़ियाँ
(बजरिये मिल मालिक)
भत्ते/बोनस और आश्वासन
उसकी सीमा बन गए
इनसे आगे के बदलाव की सम्भावना को
पहचानने से उसने इन्कार कर दिया
वह अब नहीं उठाता
मज़दूरों की हिस्सेदारी का सवाल
न ही करने देता है उन्हें हड़ताल
चुपचाप शराब पीता है
खींचता है लम्बे-लम्बे सुट्टे
और बू तथा धुँए का एक खास मित्रण तैयार करके
सभी मज़दूरों को बांट देता है
मिश्रण इतना तेज़ और कारगर सिद्ध होता है
कि वह चुन लिया जाता है
अखिल भारतीय मज़दूर यूनियन का अध्यक्ष
छपती है तमाम अखबारों में उसकी तस्वीर
और वह तस्वीर के पीछे छिपा खोमचा
तुरन्त अपने अन्दर ही कहीं गायब कर लेता है.
अब हरिया खोमचेबाज़ नहीं
एक बड़ी दुकान का मालिक है
यह दुकान समझौते बेचती है
भाषण पेलती है
और सूखी रोटी को भी
सजावट के साथ परोसती है.
दुकान कामयाब है
दुकानदार कामयाब है
मिल-मालिक कामयाब है
यह बात कितनी नायाब है
वे जो झेल रहे हैं मशीनों की दनदनाहट
फाँक रहे हैं धुँआं/उनका
सिर्फ उनका खाना खराब है.
फिर भी
हर मिल में अमन है/चैन है
उत्पादन बढ़ रहा है
उत्पादन करने वालों का वज़न घट रहा है,
और एक दिन फिर
सवाल खड़ा हो गया
कैसे बढ़े लोगों का लगातार घटता वज़न
कैसे सुधरे उनकी आंखों की रोशनी
कैसे संवरें उनके बाल
कैसे आए उनके बच्चों के चेहरों पर सदियों से गायब चमक?
एक बेचैनी ने घेर लिया पूरे देश को
होने लगे बन्द
रुकने लगी मशीनों की धौंक
उगलने लगीं चिमनियां नारे
और पहियों की हवा सरकने लगी.
तब हरिया जेनेवा में था
यूं ही नहीं था वहां
वहाँ खास कान्फ्रेंस थी
और वह अध्यक्ष था शिष्टमण्डल का.

सभी छोटे-बड़े नेताओं ने बड़ा समझाया
पर उनकी समझ में नहीं आया
हरिया को तुरन्त बुलाने का फैसला किया गया
और वह तुरन्त चला आया.
जानते थे सभी
कि सिर्फ हरिया ही मोड़ सकता है तूफान की दिशा
वही बदल सकता है मज़दूरों के इरादे
खुलवा सकता है बन्द
या तुड़वा सकता है हड़ताल
और दिलवा सकता है कुछ और सुविधाएं
पर इस बार/ उन पिसते लोगों के सामने
सवाल सुविधाओं का नहीं
अधिकारों का था
बोनस का नहीं,
हिस्सेदारी का था
मरने खपने का नहीं,
 सब कुछ बदलने का था
यह एक बहुत बड़ा खतरा था.
सिर्फ हरिया ही ऐसा डायनामाइट था
जो उड़ा सकता था इस खतरे की चट्टान
और उस डायनामाइट को उस चट्टान के साथ बांधकर
चुरुट पीते लोगों ने उसका आखिरी सिरा
अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया.
हुई छोटी-बड़ी सभाएं
अपने-अपने अनुभव/कुछ बिषैले मुद्दे
कुछ तेज़ दांत
और कोई ऐंठती हुई आँत
सभी ने फिर हरिया को ही किया अपना नेता स्वीकार
और अपने विश्वास की मोहर लगाकर
एक बार फिर भेज दिया वहां
जहाँ इतनी बड़ी चट्टान को तोड़ने के लिए
दियासलाई की एक तीली काफी थी.
हरिया की आँखों के सामने नाचने लगा अतीत
खोमचा/गालियाँ/पिता के गाल पर पड़ा थप्पड़/
अंगुलीराम/कारपोरेशन के ट्रक और फैसले/
लगातार टलते या टालते हुए फैसले
उंडेलता स्काच हरिया/पीता सिगार हरिया/
साइकिल पर सवार और गाड़ी में बन्द हरिया
नालियों की बदबू/मक्खियों की भिनभिनाहट
फोरमैन से टकराहट
अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार/यात्राएं/भत्ते
और एक तेज़ हवाई जहाज़ पर सवार हरिया
एकाएक नीचे आ गिरता है.
ध्वस्त हो गया विमान
क्या है हरिया की पहचान
वह बन्द है एक सम्पन्न छतरी में/
वह कैद है/
उसे कर दिया है अपंग/गूँगा और चेतनाशून्य.
डायनामाइट को दी जाती है सलाह
कि वह जा बैठे चट्टान पर
और अपना सिरा वहीं कमरे में छोड़ जाए.
डायनामाइट में मौजूद है विस्फोट (फिलहाल शांत).

कमरे का दरवाज़ा खुलता है
डायनामाइट बाहर निकलता है
इस बार उससे चूक नहीं होती
क्योंकि सिरा भी उसी के पास है
और सुरक्षित है उसी के पास
विस्फोट का अधिकार.
वह चट्टान के पास जाता है
और सिरा उसे पकड़ा कर
फिर कमरे में लौट आता है.