सवाल ख़ुदा से / निज़ार क़ब्बानी
ख़ुदा मेरे !
मुहब्बत करते हुए कौन कर लेता है हमें अपने वश में ?
क्या घटता है कहीं गहरे भीतर तक ?
क्या टूट जाता है कहीं अन्दर तक?
कैसे होता है ये कि लौट आते हैं हम बचपन को, प्यार में डूबे हुए ?
कि हो जाती है एक बूँद समन्दर-समन्दर
कि और ऊँचे निकल जाते हैं पेड़ खजूरों के
मीठा हो जाता है दरिया का पानी
और शम्स जैसे हाथों की क़ीमती पौहुँची, नगीनों से जड़ी !
कैसे होता है ये
जब मुहब्बत करते हैं हम ?
या ख़ुदा !
जब मुहब्बत घट जाती है अचानक यूँ ही
तब न जाने क्या जुदा होने देते हैं हम अपने वजूद से ?
वह क्या है जो होता है पैदा हमारे ही भीतर ?
क्यों हो जाते हैं हम उस अवयस्क-से थोड़े भोले, थोड़े मासूम भला ?
और जब हँस देती है महबूब
क्यों बरस जाती है चमेली टूट बिखर के बारिश जैसे ?
और क्यों होता है ये कि लगने लगती है दुनिया उदास परिन्दे-सी --
जब हमारे घुटने पर टिका के सिर अपना
सुबक उठती है वह ?
अल्लाह मेरे !
क्या कह कर पुकारूँ इसे ?
कि सदियों-सदियों
इसी मुहब्बत ने किया है क़त्ल इन्सानों का
जीते हैं किले ।
या कि जिसके दम से पिघले दिल ताकतवालों के
और हुए वे फैयाज़ रहमवाले ?
कैसे होता है ये कि बन जाती हैं जुल्फ़ें महबूबा की
तख़्त सोने का ?
उसके ओंठ मदिरा और अंगूर ?
कौन चलवाता है हमें शोलों पर ?
लुत्फ़ लेते हैं आग-ओ-दरिया में ?
क़ैद हो जाते हैं मुहब्बत करते
चाहें क्यों न रहें हों हम
सलातीन फतह करने वाले ।
क्या नाम दूँ इस मुहब्बत को
उतर जाती है दिलों में बरछी बनकर ?
क्या ये सिर-दर्द है ?
या पागलपन कोई ?
कैसे होता है ये
कि पलक झपकते ही बदल जाती है दुनिया --
हरे नख़लिस्तानों में ....प्यार में होता है क्यों ?
दुनिया हो जाती है मुलायम सा कोना ?
मेरे अल्लाह
क्या हो जाता है समझ को अपनी ?
क्यों बदल जाते हैं ख़्वाहिशों के पल सालों में ?
और फ़रेबे नज़र बदल जाती है यक़ीनों में ?
टूट क्यों जाते हैं सिलसिले साल के हफ़्तों के ?
क्यों मंसूख हुए जाते हैं मौसम भी मुहब्बत में ?
सर्दियों में क्यों चली आती है गर्मी
और खिलते हैं गुलाब आकाश के बगीचों में
ऐसा होता है क्यों प्यार करने में ?
या ख़ुदा
क्यों मग्लूब हुए जाते हैं प्यार के हाथों में
सौंप देते हैं चाबियाँ अपनी
मुकद्दस पनाहगाहों को
कि ले जाते हैं शमां ज़ाफ़रानों की उस तक कैसे ?
क्यों होते हैं इलाके में इसकी दाखिल ?
क्यों गिरते हैं इसके क़दमों में
याचना करते हुए प्यार में हम ?
क्यों सौंप देते हैं इसे अपना वह सबकुछ
जो ये माँगता रहा हमसे ?
ख़ुदा मेरे !
गर तुम सच में हो ख़ुदा
तो रहने दो हमें हमेशा के लिए
एक-दूजे को यूँ चाहनेवाला ।