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ससुराल से बेटी / अनिरुद्ध नीरव

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खिलखिलाती आ गई
ससुराल से बेटी
मन गुटुरगूँ हुआ
जैसे कबूतर सलेटी

आँख से
कहने लगी
     सारी कथा
भूल कर
दो बूँद
     रोने कि प्रथा

रह गए रिक्शे में
पाहुर पर्स और पेटी
दौड़ माँ को
भर गई
     अँकवार में
पिता ने
जब भाल चूमा
फ़्रॉक हुई दुलार में

और बहना को
हवा में उठा कर भेंटी

और फिर
शिकवे-नसीहते
     रात भर
भाइयों से भी
लड़ी कुछ
चूड़ियाँ झनकार कर

चार दिन में हो गई
चौदह बरस जेठी ।