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सह-अस्तित्त्व / किरण मिश्रा

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मेरी प्रकृति और तुम्हारी प्रकृति से
हमारा सह-अस्तित्व बना है ।
तुमने मेरे अन्दर प्रेम के बीज बोए है
और मैने प्रेम पूर्ण उत्पादन किया है ।

तुम्हे दी है प्रसन्नता की फ़सल
तुम्हारा प्रेम मेरी रचना मे हमेशा प्रवाहमान रहा है
कभी वृक्ष, वन, सागर,
कभी परबत, हवा, बादल मे

बस इतना करना
अपने अन्तर्मन के सत्य से
मेरे मन को बाँध कर
बदल देना मेरे भौतिक मन को
प्राकृतिक मन मे ।