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साँझ का सूरज / ज्योति रीता
Kavita Kosh से
प्रकृति के विपरीत
सांझ का सूरज बन
उग हो तुम
हर नियम को ताक पर रख
हर जकड़न को तोड़
छोड़ सारी पाबंदी
अपनी मनमर्जी कर आए हो तुम
बहुत हुआ
तपना-तपाना
बहुत हुआ
जगना-जगाना
छोड़ सारे रीत पुराने
छोड़ सारे रिश्ते बेगाने
जीवन ताल पीछे छोड़
वक्त को मोड़ आए हो तुम
सुबह के बदले
शाम को उग आए हो तुम॥