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सांई अपने चित्त की / गिरिधर

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सांई अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ।
तब लगि मन में राखिये, जब लगि कारज होइ॥

जब लगि कारज होइ, भूलि कबं नहिं कहिये।
दुरजन हंसै न कोय, आप सियरे ह्वै रहिये।

कह 'गिरिधर कविराय बात चतुरन के र्ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिये नहिं सांई॥