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सांकलें काटने / हरीश भादानी

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रोशनी
तुमको आवाज़ देते रहें
आसमां को
जमीं पर
झुका देखती आंख में
आ पड़ी किरकिरी
रिसते हुए
गुनगुने दर्द को पोंछने
रोशनी
तुमको आवाज देते रहें
आहटों से जुड़े
दूर को काट
बना दी गई एक खाई
बीच की
दलदली झील को सोखने
रोशनी
तुम को आवाज देते रहें
थकन ओढ़ कर
सो गया है
मशीनों चिमनियों का शहर
जड़ लिए हैं
किवाड़े-खिड़कियां
गुमसुम खड़ा है
खबरदार बोले
मनों पर लगी सांकलें काटने
रोशनी
तुम को आवाज देते रहें