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सांप रबर के / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मुन्ना मेले से दो लाया,
काले-काले सांप रबर के।
भरी दुपहरिया उसने दोनों,
फेंके सांप बड़ी दीदी पर।
डर के मारे फूट पड़ा था,
दीदी के चिल्लाने का स्वर।
क्या कर पाती वह बेचारी,
हो बेहोश गिर पड़ी डर से।
पहले तो मम्मीजी दौड़ीं,
देखा चीख कहाँ से आई।
छुटकी ने देखा सांपों को,
सांप-सांप कह वह चिल्लाई।
हुआ शोरगुल तो फौरन ही,
हाजिर हुए लोग घर भर के।
सांप पड़े देखे दादा ने,
हट्ट-हट्ट कर लगे भगाने।
लाठी लाओ, लाठी लाओ,
लगे ज़ोर से वे चिल्लाने।
दोनों सांप भयंकर हैं ये,
लाठी ठोंक निकालो घर से।
घर के लोग सभी थे विचलित,
बात समझ मुन्ना को आई।
दोनों सांप नहीं हैं असली,
नकली हैं यह बात बताई।
डांट पड़ रही अब मुन्ना को,
दादीजी के तीखे स्वर से।