भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सांस-सांस नै सुळती लाधै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सांस-सांस नै सुळती लाधै
रात-रात आ रुळती लाधै
अष्टपौर फोरूं पसवाड़ा
नाड़-नाड़ आ कुळती लाधै
चढती उमर खिंडग्या खोखा
गळी-गळी आ रुळती लाधै
तरणाती सांस देख मांचो
ठौड़-ठौड़ आ लुळती लाधै
ल्यो सीर री खीर पुरसीजै
ठांव-ठांव आ ढुळती लाधै