साइड लोअर बर्थ पर कपोत / राग तेलंग
यह एक यात्रा थी जहां बाहर प्रकृति थी अपने सारे रंगों में
अंदर दो खिड़कियां थीं जिनमें लोहे की सलाखें लगी हुईं थीं
मगर प्रकाश और हवा भरपूर आ रहे थे
वह ठसाठस भरी एक ट्रेन की एक साइड लोअर बर्थ थी
जिस पर बैठा हुआ एक जोड़ा अपनी ही दुनिया में था सबसे ग़ाफ़िल
दोनों के बीच संवाद हो रहे थे जो किसी को सुनाई नहीं दे रहे थे शोर में
सुनाई दे भी जाते तो उससे ज्यादा महत्वपूर्ण था
उनका एक.दूसरे के शरीर को बीच.बीच में स्पर्श करते देखना और
उनके चेहरे पर लगातार तैरती बेइंतिहा खुशी
जिसे देखकर किसी को भी रश्क़ हो जाए
हर शब्द फेंकते.फेंकते लड़का शनैः शनैः
लड़की के होठों को एकटक तकते उसके और.और करीब आते जाता
लगभग उस सीमा तक जहां शब्दों की जरूरत नहीं रह जाती और आंखें मुंद जाती हैं
बीच.बीच में लड़का बाहर की ओर निहारता और एक रंग लड़की की आंखों में फेंकता
फलतः वह और सिंदूरी हो जाती
लड़की उमगकर उसके बालों को हाथ से छितर.बितर कर देती और
लड़का शरारत से मुस्करा उठता
एक अवलोकन में लड़की की गोद में लड़के ने अपना सिर रख दिया था
वह उसके चेहरे पर अपनी सबसे लंबी अंगुली इस तरह फेर रही थी
जैसे गढ़ रही हो इच्छित मूरत
लड़का अधिक कोण की पूरी सीमा के कोण से उसे निहार रहा था स्मित मुद्रा में लेटे हुए
एक दृश्य में तो लड़की उकड़ूं बैठ गई थी और उसके फैले हाथ लड़के ने थाम लिए थे
वह उसके नाखूनों को काटने.तराशने में रत था
हर बार नाखून काटकर वह उसे फाइल से घिसता और दूर करता खुरदुरापन मनुहार के साथ
यह एक दृश्य भर नहीं रह गया था
हस तरह वे जीवन को और स्नेहासिक्त और मृदुल बना रहे थे
यह एक यात्रा जिसमें बाकी सभी अपनी.अपनी मंज़िल का इंतज़ार कर रहे थे
मगर कपोतों को देखकर लगता था यह यात्रा नहीं साथ है और साथ ही अभीष्ट है
हर दृश्य में प्रणय भरपूर था
जो क्रमशरू हुआ जाता था हर उतरते यात्री के साथ
यहां यह कविता रूकती है यहां कवि को उतरना था
न चाहते हुए भी।