भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साक़िया तेरा इसरार अपनी जगह / नवाज़ देवबंदी
Kavita Kosh से
साक़िया तेरा इसरार अपनी जगह
तेरे मैकश का इन्कार अपनी जगह
तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह
और हक़ीक़त का इज़्हार अपनी जगह
अब खंडहर है खंडहर ही कहो दोस्तो
शीश महलों के आसार अपनी जगह
तूर पर लाख मूसा से हो गुफ़्तागू
अर्श-ए-आज़म पे दीदार अपनी जगह
अव्वलन हक़ ने तख़्लीक़ जिसको किया
सबके बाद उसका इज़हार अपनी जगह
मुख़्तसर ये बता सर बा-कफ़ कौन था
जीत अपनी जगह हार अपनी जगह
भाई से भाई के कुछ तक़ाज़े भी हैं
सहन की बीच की दीवार अपनी जगह