भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साखी / दरिया साहब
Kavita Kosh से
दरिया लच्छन साध का, क्या गिरही क्या भेख।
नि:कपटी निरसंक रहि, बाहर भीतर एक॥
कानों सुनी सो झूठ सब, ऑंखों देखी साँच।
दरिया देखे जानिए, यह कंचन यह काँच॥
पारस परसा जानिए, जो पलटै ऍंग-अंग।
अंग-अंग पलटै नहीं, तौ है झूठा संग॥
बड के बड लागै नहीं, बड के लागै बीज।
दरिया नान्हा होयकर, रामनाम गह चीज॥